Ganesh Chaturthi गणेश चतुर्थी क्यों मनाया जाता है

Ganesh Chaturthi  गणेश चतुर्थी क्यों मनाया जाता है

गणेश चतुर्थी की कहानी क्या है?

गणेश चतुर्थी की कहानी हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में मिलती है और इसे भगवान गणेश की जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी हिन्दू कैलेंडर के भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है, जो आमतौर पर अगस्त और सितंबर के बीच होती है।

गणेश चतुर्थी की कहानी विभिन्न पुराणों में विभिन्न रूपों में प्रस्तुत है, लेकिन एक सामान्य कथा है जो प्रसिद्ध है।

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कथा के अनुसार, गणेश जी का निर्माण देवी पार्वती ने किया था। एक दिन, जब देवी पार्वती ने स्नान के लिए जाने के लिए गोविंद को बनाने के लिए मिट्टी को निकाला तो उन्होंने उसे अपनी शापशक्ति से संजीवनी बनाने का उद्देश्य से जीवन देने का इरादा किया। इसी प्रकार से उन्होंने गणेश को बनाया और उसे अपने आसन पर बैठा रखा।

जब देवी पार्वती गणेश को स्नान के लिए भेजने के लिए बाहर गईं, तब उन्होंने गणेश को निराकार रूप में रखा और उन्हें कहा कि कोई भी विद्या में उनके अग्रणी नहीं हो सकता है। इसके बाद, देवी पार्वती ने गणेश को ब्रह्मा और विष्णु के ब्रह्मवा और विष्णु की अंश रूपी विद्या देने का आदान-प्रदान किया।

इस प्रकार, गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश के जन्म के रूप में मनाने का अभिष्ट बना, और इस दिन भक्तजन गणेश जी की पूजा, आराधना, और उपासना करते हैं।

गणेश चतुर्थी मनाने का कारण क्या है Ganesh Chaturthi

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गणेश चतुर्थी का मनाया जाने वाला कारण भगवान गणेश के जन्मोत्सव को याद करना और उनकी पूजा-अराधना करना है। यह हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है और इसे भक्ति और समर्पण के भाव से मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का मनाने का कारण विभिन्न कथाओं और पौराणिक ग्रंथों से जुड़ा हुआ है, जिसमें एक प्रमुख कथा गणेश जी के जन्म की है।

गणेश चतुर्थी का मुख्य कारण यह है कि इस दिन भगवान गणेश को मानवता में प्रकट हुए थे। इस दिन उन्हें देवी पार्वती द्वारा बनाया गया था, और उन्होंने मानव जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति के लिए अपने भक्तों के बीच आगमन किया।

गणेश चतुर्थी के दिन भक्तजन गणेश जी की पूजा करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और उनकी कृपा से जीवन में समृद्धि, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

गणेश चतुर्थी के दौरान, भक्तजन भगवान गणेश की मूर्तियों की स्थापना करते हैं, उन्हें पूजते हैं, आरती गाते हैं, मिठाईयाँ बनाते हैं, और उनके चरणों में अपनी प्रार्थनाएं अर्पित करते हैं। इसे लोग समृद्धि, शुभकामनाओं, और सुख-शांति का प्रतीक मानते हैं और गणेश जी की आराधना के माध्यम से उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

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गणेश चतुर्थी की शुरुआत कैसे हुई

गणेश चतुर्थी की शुरुआत की कई कथाएं हैं, और इनमें से कुछ कथाएं पुराणों और लोककथाओं में पाई जाती हैं। यहां एक प्रमुख कथा है जो गणेश चतुर्थी की शुरुआत से जुड़ी है:

Ganesh Chaturthi कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने गणेश को अपनी रक्षा के लिए बनाया था। एक दिन, जब देवी पार्वती स्नान के लिए बाहर गईं थीं, तब उन्होंने अपने बच्चे को स्नान के लिए देखा और उसने उसे स्नान के लिए जल का कटोरा बनाने को कहा।

इसी बीच, भगवान शिव गृहप्रवेश करने के लिए आएं, लेकिन उन्हें अपने बच्चे को नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने अपनी गणपति रूप में बनाए गए मूर्ति को प्राणप्रतिष्ठा की और उसे जीवंत बना दिया। इसके बाद, देवी पार्वती ने उससे कहा कि वह अब इस रूप में हमेशा रहेंगे और उन्हें बच्चों की रक्षा करने का कारण बनेंगे।

इस प्रकार, गणेश चतुर्थी की शुरुआत हुई, जो तब से हिन्दू समाज में भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस त्योहार को समर्पित करने का उद्देश्य उनकी पूजा, आराधना, और भक्ति के माध्यम से उनके आशीर्वाद को प्राप्त करना है और उनकी कृपा से सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति करना है।

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हम गणेश चतुर्थी को 10 दिनों तक क्यों मनाते हैं

गणेश चतुर्थी के 10 दिनों तक के उत्सव का नाम “गणेशोत्सव” है, जो भारत में विशेष रूप से महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश राज्यों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, और इसका पूरा भारत में आचारण होता है।

गणेश चतुर्थी के 10 दिनों के उत्सव का आयोजन कई कारणों से किया जाता है:

गणेश जी के आगमन का आदर्श:

गणेश चतुर्थी का पर्व गणेश जी के मानवता में प्रकट होने की स्मृति में मनाया जाता है। इस अवसर पर भगवान गणेश के मूर्तियों का स्थापना किया जाता है और उन्हें विशेष आराधना और पूजा के साथ स्वागत किया जाता है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

इस उत्सव के माध्यम से लोग धार्मिक और सांस्कृतिक आदर्शों का पालन करते हैं और अपने घरों में भगवान गणेश की पूजा करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

सामाजिक सजगता:

गणेश चतुर्थी के दौरान समुदाय में एकता और सामूहिक भावना को बढ़ावा मिलता है। लोग मिल जुलकर उत्सव की तैयारी करते हैं और एक दूसरे के साथ मिलकर उत्सव मनाने का आनंद लेते हैं।

भगवान गणेश की विद्या का प्रचार:

गणेश चतुर्थी के दिनों में विभिन्न प्राचीन स्थलों और शिक्षा संस्थानों में भगवान गणेश की पूजा और विद्या का प्रचार-प्रसार किया जाता है।

प्रदूषण कमी:

गणेश चतुर्थी के उत्सव के दौरान बहुत बड़े मात्रा में श्राद्धालु भक्तों की संख्या बढ़ जाती है और लोग नगर में सार्वजनिक जगहों पर छोटे और बड़े स्थानों पर बाजार लगाते हैं। इससे बाहर जल्दी बनने वाले प्लास्टिक के बागों का उपयोग कम होता है और इससे प्रदूषण कम होता है।

इन सभी कारणों से गणेश चतुर्थी का उत्सव दस दिनों तक मनाया जाता है और इस पूरे कार्यक्रम के दौरान भक्तजन गणेश जी की आराधना करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

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गणेश मूर्ति को पानी में क्यों विसर्जित किया जाता है

गणेश मूर्ति को पानी में विसर्जित करने का प्रथा भगवान गणेश के जन्मोत्सव के उत्सव के समापन का हिस्सा है, जिसे “विसर्जन” या “निमज्जन” कहा जाता है। यह प्रक्रिया अक्सर गणेश चतुर्थी के दौरान की जाती है, जो आमतौर पर भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को होती है।

इस प्रक्रिया के पीछे कई कारण हो सकते हैं:

समापन का संकेत:

गणेश चतुर्थी का उत्सव दस दिनों तक चलता है, और इसके अंत में मूर्ति को जल में विसर्जित करना एक संकेत है कि उत्सव समाप्त हो गया है और भगवान गणेश वापस अपने लोक को लौट रहे हैं।

प्राकृतिक तत्वों का समर्पण:

गणेश चतुर्थी के उत्सव में उपयोग किए जाने वाले औद्योगिक और पर्यावरण के अभिवादनपूर्ण उपकरणों को प्राकृतिक तत्वों में पुनर्निर्मित करने के लिए भी यह प्रक्रिया हेतुवादी है।

अवश्यकता का सामर्थ्य:

बड़े उपवास और आराधना के बाद गणेश मूर्ति को पानी में विसर्जित करना एक विशिष्ट आदर्श है जो पुनर्निर्मिति और उत्सव के पूर्णता की प्रतीक हो सकता है।

आत्म-समर्पण:

विसर्जन के माध्यम से भक्त भगवान गणेश के सामर्थ्य, विभूति, और आदर्शों को भी अपने जीवन में समर्पित करने का संकेत करते हैं। यह एक आत्म-समर्पण का अभ्यास हो सकता है।

इस प्रक्रिया को विभिन्न स्थानों में विभिन्न रूपों में किया जाता है, लेकिन सामान्यत: विसर्जन प्रक्रिया में गणेश मूर्ति को पानी में स्थानीय झीलों, नदियों या समुद्रों में विसर्जित किया जाता है।

गणेश मूर्ति कौन सी शुभ होती है

हिन्दू धर्म में गणेश मूर्तियों की विशेषता और उनकी शुभता को लेकर कई परंपराएं और आदर्श हैं। गणेश मूर्तियों के निर्माण में विभिन्न आदर्श और स्थानीय परंपराएं होती हैं, और इसके लिए कुछ सामान्य निर्देश हैं जो लोगों को शुभता और धार्मिकता की भावना से जोड़ते हैं। यह कुछ आम दिशानिर्देश हैं:

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चार भुजा (Four Arms):

शुभ गणेश मूर्तियों में गणेश के चार भुजाएं होती हैं, जिनमें सामान्यत: पासा, अंकुश, मोदक, और धृति या पुस्तक हो सकती हैं।

मोदक को साथ में:

मोदक गणेश का प्रिय भोग है, और इसलिए शुभ मूर्तियों में गणेश के हाथ में मोदक होता है।

बिना या अगले के साथ एक हाथ में पासा:

गणेश के एक हाथ में पासा होता है जो समस्त संसार को पकड़ने की प्रतीक है, जो अवश्यकता और आवश्यकता की सिद्धांत को दर्शाता है।

भूषणों की समृद्धि:

शुभ मूर्तियों में गणेश के शिर्षक (मुख) पर सूर्य, चंद्र, कलश, मूकुट, और मणि आदि भूषण होते हैं जो धार्मिकता, शक्ति, और समृद्धि की प्रतीक हो सकते हैं।

लम्बी बिना (ट्रंक):

शुभ गणेश मूर्तियों में गणेश का लम्बा बिना होता है, जो भक्तों के लिए कल्याणकारी होता है और उन्हें सुख-शांति का आशीर्वाद देता है।

यहां ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये निर्देश भिन्न-भिन्न स्थानों और समुदायों में भिन्न रूपों में भी बदल सकते हैं। लोग आमतौर पर अपनी आस्था, परंपरा, और स्थानीय प्रवृत्तियों के अनुसार मूर्तियों का चयन करते हैं।

गणेश विसर्जन हमें क्या सिखाते हैं

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गणेश विसर्जन एक प्राचीन धार्मिक परंपरा है जो हिन्दू धर्म में भगवान गणेश के उत्सव के दौरान प्रचलित है। इस परंपरा के माध्यम से कई महत्वपूर्ण सिखें उपजती हैं जो मानव जीवन में उपयोगी हो सकती हैं:

आत्म-समर्पण और निर्भीकता:

गणेश विसर्जन का प्रक्रियात्मक पहलू है आत्म-समर्पण का। भक्त अपने भगवान को श्रद्धापूर्वक समर्पित होकर उन्हें पानी में विसर्जित करते हैं, जो निर्भीकता और विनम्रता का परिचायक हो सकता है।

अनिवार्य बदलाव का स्वीकृति:

गणेश विसर्जन भी बदलाव की स्वीकृति का प्रतीक हो सकता है। जीवन में अनिवार्य बदलाव आना चाहिए, और इस प्रक्रिया के माध्यम से हम यह सिख सकते हैं कि बदलाव ना केवल आवश्यक है, बल्कि इसे स्वीकार करना भी महत्वपूर्ण है।

प्राकृतिक संरक्षण:

गणेश विसर्जन के प्रक्रिया में मूर्ति को पानी में विसर्जित करने से पर्यावरण की सुरक्षा का महत्व बनता है। इस संदर्भ में, आधुनिक युग में लोग प्रदूषण नियंत्रण के उपायों का भी ध्यान रखते हैं।

 

सामाजिक साझेदारी और समर्थन

गणेश विसर्जन के दौरान समुदाय के सदस्यों के बीच सामाजिक साझेदारी और समर्थन का आत्मा मिलता है। लोग मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं और भगवान गणेश को विसर्जित करने के दौरान एक दूसरे का साथ देते हैं।

आध्यात्मिक संबंध और अद्भुतता की सीख: गणेश विसर्जन का अंत एक आध्यात्मिक आनुभव हो सकता है जो भक्त को भगवान गणेश के साथ अद्भुतता और आत्मा के संबंध में महसूस करने का अवसर देता है।

इन सीखों के माध्यम से गणेश विसर्जन हमें विचारशीलता, प्रेम, सामाजिक समर्थन, और प्राकृतिक संरक्षण के मूल्यों को सीखने का अवसर प्रदान कर सकता है।

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