Ganesh Ji Ki Kahani गणेश जी की कहानी

Ganesh Ji Ki Kahani गणेश जी की कहानी

Ganesh Ji Ki Kahani
Ganesh Ji Ki Kahani

Ganesh Ji Ki कहानी के अनुसार, देवी पार्वती ने अपने शिशु रूपी पुत्र को बनाने के लिए उपासना की थी, क्योंकि वह एक सकारात्मक और विनम्र संतान चाहती थीं। उनकी इच्छा पर भगवान शिव ने एक सुंदर बालक की रूप में अपनी पत्नी को आशीर्वाद दिया।

पार्वती ने अपने बच्चे को बचपन में सभी आध्यात्मिक और राजनीतिक योजनाओं की जानकारी प्रदान की। एक दिन, जब वह स्वर्ग में स्नान कर रहे थे, उसने अपने बच्चे को घर पर बैठाया और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए गुलाब का फूल दिया। उसने उनसे स्नान के दौरान किसी से मिलने जा नहीं देने का आदान-प्रदान किया।

इस बीच, भगवान शिव का भूतपूर्व मानव सेनापति भी आता है और गणेश जी से मिलता है। गणेश जी उसे रुकने की अनुमति नहीं देते हैं, जिससे उसे बहुत महाद्वीपों में भ्रमण करना पड़ता है।

देवी पार्वती वापस आती हैं और उन्हें अपने संतान को देखकर परेशान होती हैं क्योंकि वह अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए किसी से मिलने की इजाजत नहीं दे रहा है। इस पर गणेश जी ने अपनी माता से कहा, “माता, मैंने तुम्हें वचन दिया है कि मैं किसी से मिलने के लिए इजाजत नहीं दूंगा।”

इस पर देवी पार्वती ने अपने पुत्र को बहुत आशीर्वाद दिया और उन्होंने उसे गणेश (गणपति) कहा, जिसका अर्थ है “सभी देवताओं के प्रमुख”। इसके बाद, गणेश जी ने सनातन धर्म के अनुसार आपको प्रथम पूज्य माना जाता है और उन्हें विभिन्न कारणों से पूजा जाता है।

गणेश जी को विद्या, बुद्धि, और समृद्धि के देवता के रूप में पूजा जाता है और उन्हें सभी कार्यों के प्रारंभ में प्रणाम किया जाता है। उनकी पूजा भारतीय साहित्य, कला, और धरोहर में विशेष महत्वपूर्ण है, और वे सर्वशक्तिमान देवता के रूप में माने जाते हैं।

गणेश जी की दो पत्नी क्यों है Ganesh Ji Ki Kahani

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गणेश जी के दो पत्नियाँ हैं – रिद्धि और सिद्धि। इन दोनों की कथा महाभारत के आदिपर्व (Adi Parva) में विवरणित है। कथा के अनुसार, एक दिन गणेश जी वन में विचरण कर रहे थे जब उन्होंने एक युवती का दर्शन किया जिसका नाम रिद्धि था। गणेश जी ने रिद्धि की कृपा पाकर उससे विवाह कर लिया।

दूसरी ओर, गणेश जी को एक और युवती, सिद्धि, का परिचय हुआ। गणेश जी ने सिद्धि के साथ भी विवाह कर लिया। इस प्रकार, गणेश जी की दो पत्नियाँ हो गईं – रिद्धि और सिद्धि।

 

इस कथा से सिद्ध होता है कि गणेश जी को यहां दो पत्नियों के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो उनके साथ उनके शक्तिस्वरूप को दर्शाती हैं। रिद्धि का अर्थ है “समृद्धि” और सिद्धि का अर्थ है “सिद्धि” या “योग्यता”। इन दोनों के साथ गणेश जी को समृद्धि और सिद्धि की प्राप्ति में मदद मिलती है।

लक्ष्मी और गणेश जी का क्या रिश्ता है Ganesh Ji Ki Kahani ?

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लक्ष्मी और गणेश जी का विशेष रिश्ता है, जो हिन्दू धर्म में पूजा जाता है। यह रिश्ता उनके पूजा-पाठ और उनकी कथाओं में सामान्यरूप से प्रकट होता है।

गणेश जी को “विघ्नहर्ता” और “विघ्नराज” कहा जाता है, जिनका अर्थ है “बाधा हरने वाला” और “बाधा के राजा”। वह श्रद्धापूर्वक पूजे जाते हैं और किसी भी कार्य की शुरुआत में उन्हें प्रणाम किया जाता है ताकि कोई भी बाधा ना आए।

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लक्ष्मी माता, धन, समृद्धि, सौभाग्य, और सम्पत्ति की देवी हैं। वह विष्णु भगवान की पत्नी कहलाती हैं और सामाजिक रूप से धन और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं।

गणेश जी को विष्णु और लक्ष्मी के पुत्र के रूप में माना जाता है, इसलिए वे एक परिवार में सद्गुण सम्पन्न हैं। गणेश जी को सभी कार्यों की शुभ शक्ति का प्रतीक माना जाता है, और उनकी पूजा से बाधाएं दूर होती हैं और सुख-शांति मिलती है। इसलिए, लक्ष्मी और गणेश जी को साथ में पूजा जाता है, ताकि सभी कार्य सुरक्षित रहें और सफलता मिले।

यह रिश्ता हिन्दू परंपरा में सामाजिक समृद्धि, धन, और सफलता की प्राप्ति के लिए पूजा जाता है और लोग इसे अपने जीवन में महत्वपूर्ण मानते हैं।

गणेश का पुत्र कौन है?

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गणेश जी का पुत्र कार्तिकेय (कार्तिक) है। कार्तिकेय को शनि पुत्र भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने शनि देवता की रक्षा की थी। इसके अलावा, कार्तिकेय को स्कंद, मुरुगन, और शांतिकुमार भी कहा जाता है। कार्तिकेय की जननी देवी पार्वती थी और उनके पिता भगवान शिव थे। गणेश जी की कहानी में होने वाले एक घटना के बाद, जब उन्हें माता पार्वती द्वारा बनाया गया था, पार्वती ने एक और पुत्र की इच्छा की थी। इसके बाद, कार्तिकेय का जन्म हुआ और वह देवताओं के महासेनापति बने।

कार्तिकेय को शक्ति, वीरता, और ब्रह्मचर्य का प्रतीक माना जाता है। उन्हें बहुत उच्च स्थान पर पूजा जाता है और उनका व्रत कार्तिक मास (हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ऑक्टोबर-नवम्बर) में मनाया जाता है, जिसे “कार्तिक मास” कहा जाता है।

रिद्धि और सिद्धि किसकी बेटी थी?

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रिद्धि और सिद्धि, हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुबेर (यक्षराज) की दोनों पुत्रियाँ थीं। कुबेर धन के देवता के रूप में जाने जाते हैं और उनका समृद्धि और धन की संपत्ति से संबंधित है। इसके बाद, रिद्धि और सिद्धि यक्षराज कुबेर की सुंदरी बेटियाँ बन गईं।

यहां एक कहानी है कि रिद्धि और सिद्धि की सौंदर्य को देखकर भगवान शिव के पुत्र गणेश जी उनसे विवाह करना चाहते थे। इस प्रयास में, गणेश जी ने रिद्धि और सिद्धि से विवाह के लिए प्रयास किया, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया क्योंकि वह शिव-परिवार का सदस्य था। इसके बाद, रिद्धि और सिद्धि ने कहा कि वे विशेष रूप से गणेश जी की पूजा में हमेशा शामिल रहेंगी और इस रूप में वह उनकी पत्नियाँ बनेंगी। गणेश जी ने इसे स्वीकार किया और इस प्रकार रिद्धि और सिद्धि गणेश जी की पत्नियाँ बन गईं।

इसके बाद से, रिद्धि और सिद्धि गणेश जी के साथ हमेशा रहती हैं और उनकी पूजा में शामिल होती हैं। यह कहानी हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में मिलती है और गणेश जी की कथाएं महत्वपूर्ण हैं।

गणेश जी के वंशज कौन है?

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गणेश जी के वंशज को “गणपत्य” कहा जाता है, और विशेषकर उनका एक पुत्र है जिसका नाम है “शुभ” या “क्षेम”। गणेश जी के परिवार का विवरण विभिन्न पुराणों और ग्रंथों में विभिन्न रूपों में प्रस्तुत है, लेकिन एक सामान्य कथा उनके वंशज के बारे में है।

कथा के अनुसार, गणेश जी की पत्नी रिद्धि और सिद्धि के साथ उनका एक पुत्र था, जिसका नाम था “शुभ” या “क्षेम”। शुभ ने भी देवी सरस्वती की कृपा पाई थी और उनके साथ विद्या और ज्ञान की भागीदारी की थी। गणेश जी के परिवार का विवरण विभिन्न पुराणों और शाखाओं में भिन्न हो सकता है, और कुछ स्थलों पर शुभ को गणेश जी के चारों पुत्रों में से एक माना जाता है।

इस प्रकार, गणेश जी के वंशजों का विवरण पुराणिक कथाओं और साहित्य से निकाला जा सकता है, लेकिन वह विशेष प्रमुखता के साथ उनके परिवार का हिस्सा हैं जो भक्तों के बीच पूजा जाता है।

बुद्धि के देवता कौन से हैं?

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बुद्धि के देवता को विशेषकर हिन्दू धर्म में मानव जीवन में बुद्धि, ज्ञान, और बुद्धिमत्ता की स्वरूप रूप में पूजा जाता है। इसके लिए कई देवताएं मानी जाती हैं, और इसमें से कुछ मुख्य देवताएं निम्नलिखित हैं:

देवी सरस्वती:

सरस्वती देवी विद्या, ज्ञान, कला, और बुद्धि की देवी हैं। उन्हें स्वर्णवर्ण और हंसवाहिनी कहा जाता है, और उनका वाहन हंस होता है। सरस्वती पूजा हिन्दू समुदाय में बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति के लिए की जाती है।

ब्रह्मा:

ब्रह्मा देव, हिन्दू त्रिमूर्ति में एक हैं, और उन्हें सृष्टि के देवता कहा जाता है। उन्हें ज्ञान का पिता माना जाता है, और वे चार मुख वाले होते हैं, जिनसे सभी चरणों का ज्ञान प्राप्त होता है।

बुद्ध:

बुद्ध गौतम बुद्ध, जिन्हें सिद्धार्थ भी कहा जाता है, भगवान बुद्ध के रूप में माना जाता है, और उनकी उपदेशों में बुद्धि, विवेक, और मोक्ष की बातें हैं। उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से मानवता को ज्ञान का मार्ग दिखाया।

ये देवताएं बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति के लिए पूजी जाती हैं, और उनके आदर्शों के माध्यम से लोग जीवन में समझदारी और ज्ञान की प्राप्ति की कोशिश करते हैं।

 

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