रमा एकादशी के दिन ज़रूर करें ये अचूक उपाय, रमा एकादशी व्रत कथा का महत्व,
हिन्दू ग्रन्थ पद्म पुराण के अनुसार, रमा एकादशी (Rama Ekadashi) का व्रत कामधेनु और चिंतामणि के समान फल देता है। यह सभी पापों का नाश कर मनुष्य को पुण्य लाभ देता है। इस दिन व्रत करने से माँ लक्ष्मी और भगवान् विष्णु की विशेष कृपा होती है। आर्थिक संकट से मुक्ति मिलती है और सुख समृद्धि घर में निवास करती है। जो भक्त इस दिन भगवान विष्णु की महिमा सुनते हैं, वो मोक्ष प्राप्त करते हैं।
रमा एकादशी (Rama Ekadashi) का व्रत बिना कथा के अधूरा माना जाता है अतः आइये जानते है क्या है व्रतकथा। युधिष्ठिरने पूछा- जनार्दन! मुझपर आपका स्नेह है; अतः कृपा करके बताइये। कार्तिकके कृष्णपक्षमें कौन-सी एकादशी होती है ? भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजन्! कार्तिकके कृष्णपक्षमें जो परम कल्याणमयी एकादशी होती है, वह ‘रमा’ (Rama Ekadashi) के नामसे विख्यात है। ‘रमा’ परम उत्तम है और बड़े-बड़े पापोंको हरनेवाली है।
रमा एकादशी ( Rama Ekadashi ) का व्रत 21 अक्टूबर 2022 को पंचांग के अनुसार बताया गया है। स्वयं में सम्पूर्ण पापों को हर कर धन, वैभव एवं सुख देने वाला है। हिंदू कैलेंडर में, एकादशी एक पवित्र दिन है जो कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष ग्यारहवें दिन में आता है।
एकादशी ( Rama Ekadashi ) को तिथियों में सबसे सर्वश्रेष्ठ तिथि का दर्जा मिला है। इस दिन सभी ईश्वर के भक्तो को उपवास रखना होता है। एकादशी के दौरान एक आदर्श निराहार व्रत रखा जाता है। इस दिन तरल पदार्थ का सेवन कर सकते हैं या, आवश्यकतानुसार, फलहारी भोजन कर सकते है ।
रमा एकादशी व्रत की कथा
रमा एकादशी का व्रत बिना कथा के अधूरा माना जाता है अतः आइये जानते है क्या है व्रतकथा।
युधिष्ठिरने पूछा- जनार्दन! मुझपर आपका स्नेह है; अतः कृपा करके बताइये। कार्तिकके कृष्णपक्षमें कौन-सी एकादशी होती है ?
भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजन्! कार्तिकके कृष्णपक्षमें जो परम कल्याणमयी एकादशी होती है, वह ‘रमा’ (Rama Ekadashi) के नामसे विख्यात है। ‘रमा’ परम उत्तम है और बड़े-बड़े पापोंको हरनेवाली है।
पूर्वकालमें मुचुकुन्द नामसे विख्यात एक राजा हो चुके हैं, जो भगवान् श्री विष्णु के भक्त और सत्यप्रतिज्ञ थे । निष्कण्टक राज्य का शासन करते हुए उस राजा के यहाँ नदियों में श्रेष्ठ चन्द्रभागा कन्या के रूप में उत्पन्न हुई। राजा ने चन्द्रसेन कुमार शोभन के साथ उसका विवाह कर दिया।
एक समय की बात है, शोभन अपने ससुर के घर आये। उनके यहाँ दशमी का दिन आने पर समूचे नगर में ढिंढोरा पिटवाया जाता था कि एकादशी के दिन कोई भी भोजन न करे,
यह डंके की घोषणा सुनकर शोभन ने अपनी प्यारी पत्नी चन्द्रभागा से कहा- ‘प्रिये! अब मुझे इस समय क्या करना चाहिये, इसकी शिक्षा दो ।’
चन्द्रभागा बोली- प्रभो ! मेरे पिता के घर पर तो (Rama Ekadashi) एकादशी को कोई भी भोजन नहीं कर सकता। हाथी, घोड़े, हाथियों के बच्चे तथा अन्यान्य पशु भी अन्न, घास तथा जल तक का आहार नहीं कर पते है ; फिर मनुष्य एकादशी के दिन कैसे भोजन कर सकते हैं। प्राणनाथ! यदि आप भोजन करेंगे तो आपकी बड़ी निन्दा होगी।
इस प्रकार मन में विचार करके अपने चित्त को दृढ़ कीजिये । शोभन ने कहा- प्रिये! तुम्हारा कहना सत्य है, मैं भी आज उपवास करूँगा। दैव का जैसा विधान है, वैसा ही होगा ।
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं- इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके शोभन ने व्रत के नियम का पालन किया। क्षुधासे उनके शरीर में पीड़ा होने लगी; अत: वे बहुत दुःखी हुए।
भूख की चिन्ता में पड़े-पड़े सूर्यास्त हो गया। रात्रि आयी, जो हरि पूजा परायण तथा जागरण में आसक्त वैष्णव मनुष्यों का हर्ष बढ़ाने वाली थी; परन्तु वही रात्रि शोभन के लिये अत्यन्त दुःख दायिनी हुई। सूर्योदय होते-होते उनका प्राणान्त हो गया। राजा मुचुकुन्द ने राजोचित काष्ठों से शोभन का दाह-संस्कार कराया।
चन्द्रभागा पतिका पारलौकिक कर्म करके पिता के ही घर पर रहने लगी। नृपश्रेष्ठ! ‘रमा’ नामक एकादशी के व्रत के प्रभाव से शोभन मन्दराचल के शिखर पर बसे हुए परम रमणीय देव पुर को प्राप्त हुआ । वहाँ शोभन द्वितीय कुबेर की भाँति शोभा पाने लगा।
राजा मुचुकुन्दके नगर में सोम शर्मा नाम से विख्यात एक ब्राह्मण रहते थे, वे तीर्थ यात्रा के प्रसङ्ग से घूमते हुए कभी मन्दराचल पर्वत पर गये। वहाँ उन्हें शोभन दिखायी दिये। राजा के दामाद को पहचान कर वे उनके समीप गये। शोभन भी उस समय द्विजश्रेष्ठ सोम शर्मा को आया जान शीघ्र ही आसन से उठकर खड़े हो गये और उन्हें प्रणाम किया। फिर क्रमशः अपने श्वशुर राजा मुचुकुन्द का, प्रिय पत्नी चन्द्रभागा का तथा समस्त नगर का कुशल- समाचार पूछा ।
सोम शर्मा ने कहा— राजन्! वहाँ सब कुशल है । यहाँ तो अद्भुत आश्चर्य चकित की बात है! ऐसा सुन्दर और विचित्र नगर तो कहीं किसी ने भी नहीं देखा होगा। बताओ तो सही, तुम्हें इस नगर की प्राप्ति कैसे हुई ?
शोभन बोले- द्विजेन्द्र ! कार्तिकके कृष्णपक्षमें जो ‘रमा’ एकादशी (Rama Ekadashi) नाम की एकादशी होती है, उसी का व्रत करने से मुझे ऐसे नगर की प्राप्ति हुई है। ब्रह्मन्! मैंने श्रद्धाहीन होकर इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था; इसलिये मैं ऐसा मानता हूँ कि यह नगर सदा स्थिर रहने वाला नहीं है। आप मुचुकुन्द की सुन्दरी कन्या चन्द्रभागा से यह सारा वृत्तान्त कहियेगा।
शोभन की बात सुनकर सोम शर्मा ब्राह्मण मुचुकुन्दपुर में गये और वहाँ चन्द्रभागा के सामने उन्होंने सारा वृत्तान्त कह सुनाया। सोम शर्मा बोले— शुभे! मैंने तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा है तथा | इन्द्रपुरी के समान उनके दुर्धर्ष नगर का भी अवलोकन किया है। वे उसे अस्थिर बतलाते थे। तुम उसको स्थिर बनाओ।
चन्द्रभागा ने कहा- ब्रह्मर्षे! मेरे मन में पति के दर्शन की लालसा लगी हुई है। आप मुझे वहाँ ले चलिये। मैं अपने व्रत के पुण्य से उस नगर को स्थिर बनाऊँगी।
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं- राजन्! चन्द्रभागा की बात सुनकर सोम शर्मा उसे साथ ले मन्दराचल पर्वत के निकट वामदेव मुनि के आश्रम पर गये। वहाँ ऋषि के मन्त्र की शक्ति तथा(Rama Ekadashi) एकादशी सेवन के प्रभाव से चन्द्रभागा का शरीर दिव्य हो गया तथा उसने दिव्य गति प्राप्त कर ली। इसके बाद वह पति के समीप गयी। उस समय उसके नेत्र हर्षोल्लास से खिल रहे थे।
अपनी प्रिय पत्नी को आयी देख शोभन को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने उसे बुलाकर अपने वामभाग में सिंहासन पर बिठाया; तदनन्तर चन्द्रभागा ने हर्ष में भरकर अपने प्रियतम से यह प्रिय वचन कहा—’नाथ! मैं हित की बात कहती हूँ, सुनिये।
पिता के घर में रहते समय जब मेरी अवस्था आठ वर्ष से अधिक हो गयी, तभी से लेकर आज तक मैंने जो एकादशी के व्रत किये हैं और उन से मेरे भीतर जो पुण्य सञ्चित हुआ है, उसके प्रभाव से यह नगर कल्प के अन्त तक स्थिर रहेगा तथा सब प्रकार के मनोवाञ्छित वैभव से समृद्धिशाली होगा।’
नृप श्रेष्ठ! इस प्रकार ‘रमा’ एकादशी व्रत के प्रभाव से चन्द्रभागा दिव्य भोग, दिव्य रूप और दिव्य आभरणों से विभूषित हो अपने पति के साथ मन्दराचल के शिखर पर विराजमान होती है
राजन्! मैंने तुम्हारे समक्ष ‘रमा एकादशी’ नामक कथा का वर्णन किया है। यह चिन्तामणि तथा कामधेनु के समान सब मनोरथों को पूर्ण करने वाली है। मैंने | दोनों पक्षों के एकादशी व्रतों का पाप नाशक माहात्म्य बताया है। जैसी
कृष्णपक्ष की एकादशी है, वैसी ही शुक्ल पक्ष की भी है; उनमें भेद नहीं करना चाहिये। जैसे सफेद रंग की गाय हो या काले रंग की, दोनों का दूध एक-सा ही होता है, इसी प्रकार दोनों पक्षों की एकादशियाँ समान फल देने वाली हैं।
जो मनुष्य एकादशी व्रतों (Rama Ekadashi) का माहात्म्य सुनता है, वह सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णु लोक में प्रतिष्ठित होता है।
एकादशी व्रत (Rama Ekadashi) लगभग एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक चलता है, जैसा कि हिंदू शास्त्रों में कहा गया है, क्योंकि यह व्रत एकादशी की पूर्व संध्या पर शुरू होता है और एकादशी के अगले दिन सूर्य के उदय होने तक चलता है।
रमा एकादशी की व्रत विधि
रमा एकादशी (Rama Ekadashi) व्रत का पालन दशमी के दिन से ही करें।
दशमी के दिन दोपहर के बाद कुछ भी नहीं खाएं।
प्रातः काल में उठकर नित्यकर्मों से मुक्त हो जाएँ।
उसके बाद स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
भगवान् विष्णु की पूजा करें।
भगवान को तुलसी के पत्ते, धूप, दीप, फूल और फल अर्पित करें।
भजन-कीर्तन करते हुए रात्रि में जागरण करें।
द्वादशी के दिन सुबह विधि पूर्वक पूजा करने के बाद ब्राह्मण और गरीबों को भोजन कराएं और सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा दें।
उसके बाद भोजन करके व्रत का पारण करें।
रमा एकादशी तिथि व मुहूर्त
एकादशी व्रत तिथि गुरुवार, 9 नवंबर 2023
पारण का समय 06:13 AM to 08:34 AM
पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त 12:35 PM
एकादशी तिथि प्रारंभ 08 नवंबर 2023 को 08:23 पूर्वाह्न
एकादशी तिथि समाप्त 09 नवंबर 2023 को सुबह 10:41 बजे
रमा एकादशी की पारण विधि
रमा एकादशी का व्रत हिन्दू धर्म में एक प्रमुख व्रत है, जो भगवान विष्णु को समर्पित किया है। क्योंकि इसका पालन करने से भगवान विष्णु सभी पापों का नाश करते हैं और भक्त को आनंद और सुख देते हैं। रमा एकादशी का आयोजन शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है, जो चैत्र और कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथियों में मनाई जाती है।
रमा एकादशी का उपवास करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:
पूना और इसके आस-पास के स्थलों में रमा एकादशी का व्रत बड़े ही धार्मिक भावना के साथ मनाया जाता है।
व्रत की शुरुआत स्नान के साथ करें, और फिर श्री विष्णु के पूजा के लिए स्थलीय मंदिर जाएं या अपने घर में पूजा करें।
इस व्रत की तैयारी में पूर्व रात को खाने-पीने में व्रत का पालन करना शुरू करें।
रमा एकादशी के दिन एक साथ कई व्रतों का पालन नहीं करना चाहिए। आपको केवल एक व्रत का पालन करना चाहिए, जो रमा एकादशी का होता है।
इस दिन द्वादशी तिथि को ब्रह्मिणों को भोजन और दान देना भी बड़ा पुण्यकारी होता है।
अन्य एकादशी व्रतों की तरह, रमा एकादशी के दिन व्रत को करना अधिक फलदायक माना जाता है।
रमा एकादशी के दिन विष्णु सहस्रनामा स्तोत्र और भगवद गीता के पाठ का विशेष महत्व है।
व्रत के दिन एकादशी की रात को उपवास के बाद, द्वादशी की तिथि पर सूर्योदय के बाद व्रत को खोलें।
रमा एकादशी का व्रत करने से पापों का नाश होता है और भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
रमा एकादशी के व्रत का पालन भक्ति और ध्यान के साथ किया जाता है और यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का एक मार्ग है।
पारण का अर्थ है व्रत तोड़ना। द्वादशी तिथि समाप्त होने के भीतर ही पारण करें। द्वादशी में पारण न करना अपराध के समान है। व्रत तोड़ने से पहले हरि वासरा के खत्म होने का इंतजार करें, हरि वासरा के दौरान पारण नहीं करना चाहिए। मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचें। व्रत तोड़ने का समय प्रात:काल है। किसी कारण वश प्रात:काल के दौरान व्रत नहीं तोड़ पाते हैं तो मध्याह्न के बाद व्रत ख़तम करें।
एकादशी व्रत (Rama Ekadashi) पूजन विधि
रमा एकादशी व्रत का पूजन विधि निम्नलिखित होती है:
व्रत की तैयारी: व्रत की तैयारी रात को खाने-पीने में व्रत का पालन करने से शुरू होती है। आपको व्रत के दिन अन्न, प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, गेहूं, बाजरा, जौ आदि के नहीं खाना है
स्नान: व्रत के दिन सुबह जल्दी नहा कर साफ कपडे पहन कर पूजा की तेयारी में जुट जाये।
पूजा सामग्री: विष्णु मूर्ति, गंध, अक्षत (चावल के दाने), फूल, दीपक, गुड़, तुलसी के पत्ते, गणेश मूर्ति, कलश, गंध, दूप, अगरबत्ती, पूजन के लिए विष्णु स्तोत्र या भागवद गीता की पुस्तक, आदि।
पूजा का आयोजन: व्रत के दिन, सूरज निकलने के बाद ही पूजा शुरू करनी करनी चाहिए। सबसे पहले पूजा गणेश जी करे फिर भगवान विष्णु की मूर्ति को सजाकर उनकी पूजा करे।
पूजा का विधान: भगवान विष्णु की मूर्ति को पुष्प,गंध,दीपक,दूप,अगरबत्ती,अक्षत,तुलसी के पत्तों से पूजें। विष्णु स्तोत्र या भगवद गीता का पाठ करें।
कथा का पाठ: रमा एकादशी के महत्व की कथा को सुनें या पढ़ें।
भोग अर्पण: पूजा के बाद भगवान गणेश और भगवन विष्णु को फल, फूल, प्रसाद, पूरी, कढ़ी, खीर, नुक्ती के लड्डू अथवा अपनी भावना और मन की सेवा भाव से जो अर्पित कर सके उसका भोग भगवन को लगाये।
एकादशी व्रत (Rama Ekadashi) पूजन विधि
दान: व्रत के दिन ब्रह्मणों को भोजन और दान जरुर करना चाहिए।
पूजा के बाद: पूजा के बाद, जैसे कि भागवद गीता के पाठ का करना या सुनना , विष्णु पुराण का पाठ और ध्यान करे।
व्रत का तोड़ना: व्रत को अगले दिन द्वादशी की तिथि पर सूर्योदय के बाद करें।
रमा एकादशी के व्रत का पालन भक्ति और पवित्रता के साथ करें, और भगवान विष्णु की कृपा और आशीर्वाद के पात्र बने।
इस दिन प्रात:काल की प्रार्थना के दौरान, भक्तों को जल्दी उठना चाहिए और ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह लगभग 5 बजे तक स्नान कर लेना चाहिए उसके बाद संध्या बंदन करें और पवित्र होकर पूरे दिन उपवास करने का संकल्प लेना चाहिए।
पवित्र पंचामृत, पवित्र तुलसी, पवित्र गंगा जल और फूलों का उपयोग करके भगवान विष्णु की सभी उपचारों से पूजा करना महत्वपूर्ण है।
उपवास का पालन करने के दो तरीके हैं: निराहर और फलाहार अर्थात आप बिना कुछ खाये व्रत रख सकते हैं अथवा शक्ति अनुसार फल या व्रत में बताये गए योग्य खाद्य पदार्थ ग्रहण कर सकते हैं । एकादशी पारण विधि व्रत के बाद द्वादशी के दिन समाप्त होती है।
एकादशी व्रत (Rama Ekadashi) में क्या खाएं और क्या नहीं ?
एकादशी व्रत का पालन करने वालों के लिए यहां कुछ विचार योग्य नियम बताये गए हैं। उस दिन से पहले दशमी को एक बार भोजन करने का विधान है तथा रात के खाने में नमक न खाए।
इस दिन ताजे फल, सूखे मेवे, सब्जियां, नट्स और दूध से बनी चीजे खा सकते हैं।
परन्तु ध्यान रहे की सभी पदार्थ सात्विक हों , जैसे लहसून प्याज से बने भोजन का ना ही भोग लगाये और ना हे खुद खाए और हो सके उस दिन घर में लहसून प्याज का उपयोग ना करे।
इसकी जगह आप सेंधा नमक का प्रयोग कर सकते हैं।
अनाज के विकल्प के रूप में लोग साबूदाना खिचड़ी खाते हैं, जो साबूदाना, मूंगफली और आलू से बनी होती है।
दशमी के दिन शहद और दाल का सेवन भी वर्जित है। इस दिन चावल तो भूल कर भी नहीं खाना चाहिए।
इस तरह एकादशी का व्रत पूरा करके भगवन विष्णु की कृपा के पात्र बने
अगर भक्ति ए. म. आर. से लिखने से या कुछ अधूरा रह गया हो तो उसके लिए माफ़ी चाहते है और आप से अनुरोश करते करके है कृपया हमारी गलती को हमें बताने का कष्ट करे कमेन्ट में आपका इंतजार रहेगा
भक्ति ए. म. आर. की तरफ आप सभी को अपना कीमती समाई देने के लिए धन्यवाद